ढोकरा आर्ट के बारे मे जानकर हैरान रह जाएंगे 

Art

Nirmal Rathore

ढोकरा कला एक प्राचीन और जीवंत धातु कला रूप है जो भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में उत्पन्न हुई थी। यह कला रूप धातु की ढलाई की एक जटिल तकनीक का उपयोग करके मूर्तियों और अन्य धातु के काम बनाने के लिए जाना जाता है।

ढोकरा कला को मोम क्षय विधि के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इसमें धातु की ढलाई के लिए मोम के एक सांचे का उपयोग किया जाता है।

ढोकरा कला की उत्पत्ति 2000 साल पहले हुई थी, और यह तब से छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों के लिए एक महत्वपूर्ण कला रूप रहा है।

ढोकरा कलाकारों ने पारंपरिक रूप से पशुओं, देवताओं और अन्य धार्मिक विषयों की मूर्तियां बनाई हैं। हाल के वर्षों में, ढोकरा कलाकारों ने अधिक आधुनिक विषयों को भी ढाला है, जैसे कि फूल, पक्षी और मानव चेहरे।

ढोकरा कला बनाने की प्रक्रिया कई चरणों में होती है।

सबसे पहले, कलाकार मिट्टी से एक सांचे को बनाता है। फिर, मोम को सांचे में डाला जाता है और इसे ठंडा होने दिया जाता है।

एक बार मोम ठोस हो जाने के बाद, कलाकार मोम के ऊपर धातु की परत डालता है। फिर, सांचे को गर्म किया जाता है, जिससे मोम पिघल जाता है और बाहर निकल जाता है।

धातु ठंडी हो जाने के बाद, सांचे को हटा दिया जाता है और ढोकरा कला बन जाती है।

ढोकरा कला एक जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया है। कलाकार को सांचे को सही ढंग से बनाने, मोम को सांचे में सही ढंग से डालने और धातु को सही ढंग से डालने में कुशल होना चाहिए। ढोकरा कला बनाने के लिए बहुत सी कला और कौशल की आवश्यकता होती है।

ऐसे ही ओर खबरों के लिए लीचे लिंक पर क्लिक करें ..